फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट बनकर 50 से ज़्यादा दिल के ऑपरेशन — भारत के स्वास्थ्य तंत्र के लिए एक चेतावनी!

 



फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट बनकर 50 से ज़्यादा दिल के ऑपरेशन — भारत के स्वास्थ्य तंत्र के लिए एक चेतावनी!

हाल ही में फरीदाबाद से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। एक MBBS डॉक्टर ने खुद को कार्डियोलॉजिस्ट बताकर पिछले 8 महीनों में 50 से अधिक हृदय ऑपरेशन कर डाले। उसने यह सब चोरी की हुई आईडी के जरिए किया — और किसी को भनक तक नहीं लगी, जब तक कि उसकी धोखाधड़ी का पर्दाफाश नहीं हुआ।

घटना का सारांश: कौन है यह फर्जी विशेषज्ञ?

पंकज मोहन शर्मा, एक MBBS डॉक्टर, बिना किसी विशेषज्ञ प्रशिक्षण के खुद को कार्डियोलॉजिस्ट बताकर बडशाह खान सिविल अस्पताल, फरीदाबाद में कार्यरत था। आठ महीनों तक उसने न सिर्फ मरीजों की जांच की, बल्कि गंभीर हृदय सर्जरी भी की — वो भी बिना अधिकार और अनुभव के।

जब मामले की पड़ताल की गई, तब पता चला कि उसने किसी और डॉक्टर की प्रोफाइल और आईडी का इस्तेमाल कर स्वास्थ्य तंत्र को धोखा दिया।


यह सिर्फ धोखाधड़ी नहीं — यह है जानलेवा लापरवाही

भले ही पंकज मोहन शर्मा एक योग्य MBBS डॉक्टर था, लेकिन कार्डियोलॉजी जैसी उच्च विशेषज्ञता की मांग करने वाले क्षेत्र में बिना प्रशिक्षण के काम करना एक सिर्फ गैरकानूनी नहीं बल्कि घातक अपराध है। ऐसे ऑपरेशनों में ज़रा सी चूक किसी की जान ले सकती है।

इस घटना ने हमारे स्वास्थ्य प्रशासन, नियामक तंत्र और अस्पतालों में नियुक्ति प्रणाली की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है।


संबंधित ताज़ा घटनाएं: क्या यह कोई पहली घटना है?

नहीं। भारत में फर्जी डॉक्टरों और अवैध चिकित्सा प्रैक्टिस के कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं:

🔹 2023 | बिहार: एक व्यक्ति ने फर्जी मेडिकल डिग्री से गांव में क्लिनिक चलाया, जिससे कई मरीजों की हालत बिगड़ गई।

🔹 2022 | दिल्ली: DU से फर्जी मार्कशीट बनवाकर MBBS प्रवेश की कोशिश, बाद में गिरफ्तार।

🔹 2021 | मुंबई: फर्जी होम्योपैथ डॉक्टर ने एलोपैथी की दवाएं देकर एक मरीज की जान खतरे में डाली।

इन घटनाओं से स्पष्ट है कि यह कोई अपवाद नहीं, बल्कि व्यवस्था में गहरी समस्या है।


प्रशासन और अस्पताल की जिम्मेदारी कहां है?

बडशाह खान अस्पताल जैसे सरकारी संस्थानों में डॉक्टरों की नियुक्ति, वेरिफिकेशन और निगरानी के लिए स्पष्ट प्रोटोकॉल होते हैं। फिर भी ऐसे व्यक्ति कैसे आठ महीने तक सक्रिय रहा — यह प्रशासनिक विफलता को उजागर करता है।

सवाल यह भी उठता है कि:

  • क्या अस्पताल में डॉक्टरों की प्रोफाइल की समय-समय पर जांच नहीं होती?
  • क्या मरीजों के ऑपरेशन रिकॉर्ड की कोई निगरानी व्यवस्था नहीं थी?
  • क्या वरिष्ठ अधिकारियों ने कभी इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया?

अब क्या होना चाहिए? — सुझाव

  1. डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए केंद्रीकृत वेरिफिकेशन सिस्टम हो, जिसमें आधार लिंक, मेडिकल काउंसिल रजिस्ट्रेशन और प्रमाणपत्र की पुष्टि अनिवार्य हो।
  2. सार्वजनिक अस्पतालों में बायोमेट्रिक लॉगिन आधारित स्वास्थ्य सेवाएं शुरू हों ताकि फर्जी पहचान से बचा जा सके।
  3. जनता को जागरूक किया जाए कि डॉक्टर की डिग्री और रजिस्ट्रेशन नंबर कैसे चेक करें (MCI/NMC पोर्टल पर)।
  4. दोषी व्यक्ति पर IPC की सख्त धाराओं में केस दर्ज कर त्वरित न्याय सुनिश्चित किया जाए ताकि ऐसा दोबारा न हो।

निष्कर्ष: भरोसे के सिस्टम में सेंध

स्वास्थ्य व्यवस्था मरीजों के जीवन और विश्वास दोनों पर टिकी होती है। जब डॉक्टर की जगह कोई धोखेबाज़ आकर ऑपरेशन करता है, तो सिर्फ शरीर नहीं — भरोसा भी घायल होता है।

फरीदाबाद की यह घटना एक चेतावनी है कि अगर हमने स्वास्थ्य तंत्र की सुरक्षा और निगरानी को प्राथमिकता नहीं दी, तो अगली बार नुकसान और भी बड़ा हो सकता है — और शायद अपूरणीय भी।



Comments