"ख़त्म तो सब होना है"



"ख़त्म तो सब होना है"

सब ख़त्म होंगे,
बहाना कुछ भी हो —
कभी वक़्त,
कभी हालात,
कभी ख़ुद हम।

हम भी ख़त्म हो जाएँगे,
न जाने कब,
कौन सा दिन आख़िरी होगा,
कौन सी मुलाक़ात अंतिम।

अपने बहाने बनेंगे,
या कोई और —
ये तो वक़्त ही तय करेगा।
हम बस निभाते रहेंगे
उन किरदारों को
जिन्हें लोग "रिश्ता" कहते हैं।

कितना डरावना होता है ये जानकर,
कि जो आपके सबसे क़रीब है,
जिसके कंधे पर सिर रखकर
आपने दर्द भुलाया,
खंजर उसी के पास मिले।

वो मुस्कुराहट,
जो कभी मरहम थी,
अब ताना बन चुकी है।
वो आँखें,
जो कभी सच बोलती थीं,
अब हर बात में धोखा छुपाए बैठी हैं।

सच यही है —
कि लोग नहीं बदलते,
बस उनकी ज़रूरतें
और बहाने बदल जाते हैं।

और एक दिन,
जब सब बहाने ख़त्म हो जाएँगे,
तो हम भी बस एक कहानी बन जाएंगे —
जिन्हें कोई नहीं पढ़ेगा,
बस पलट देगा।



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