"मौन की अनुगूंज"

"मौन की अनुगूंज"

ध्वनियाँ चलती हैं
वायु की सीमाओं में,
एक दूरी तय करती हैं —
फिर खो जाती हैं
अनुगूंज की थकन में।

पर मौन...
मौन कहीं नहीं जाता,
वो बस ठहरता है —
हृदय की गहराइयों में,
अंतरात्मा की सीढ़ियों पर।

कोई शब्द नहीं,

फिर भी संवाद होता है।
कोई आवाज़ नहीं,
फिर भी सन्नाटे में
गूंजती हैं सच्चाइयाँ।

मौन, एक प्रश्न भी है

और

उत्तर भी।
एक सेतु है
संसार और आत्मा के बीच।

ध्वनियाँ बाहर की होती हैं,

पर मौन भीतर से उपजता है।
वो परम के पार
बिना किसी सीमा के
बहता है —
जैसे नदी अपने उद्गम से पहले भी बहती हो।


**"शब्द जहाँ थम जाते हैं,

मौन वहीं से बोलता है..."**


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