"रविंद्रनाथ टैगोर का अपमान: एक विरासत पर हमला"
"रविंद्रनाथ टैगोर का अपमान: एक विरासत पर हमला"
बांग्लादेश के सिराजगंज ज़िले में स्थित रविंद्रनाथ टैगोर की कचारीबाड़ी पर भीड़ द्वारा किया गया हमला, केवल एक इमारत पर हमला नहीं था, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक चेतना और साहित्यिक गौरव पर चोट थी।
इस ऐतिहासिक स्थल पर हमला किसी सामान्य घटना की तरह नहीं देखा जा सकता। यह वही स्थान है, जहाँ नोबेल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर ने अपने अनेक रचनात्मक क्षण बिताए थे—जहाँ उन्होंने कविता, दर्शन और मानवता के गीत रचे थे।
बताया जा रहा है कि यह हमला एक पार्किंग विवाद से शुरू हुआ और बाद में उग्र भीड़ ने इस सांस्कृतिक धरोहर को तहस-नहस कर डाला। वहाँ मौजूद सभागार को नुकसान पहुंचाया गया और उसके निदेशक पर हमला किया गया। यह न केवल एक ऐतिहासिक विरासत का अपमान है, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप की साझा संस्कृति पर भी एक गंभीर हमला है।
भारत में इस घटना को लेकर तीव्र प्रतिक्रिया हुई है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इसे एक “पूर्व नियोजित सांस्कृतिक हमला” करार देते हुए, बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर कड़ी नाराज़गी ज़ाहिर की है। उनका कहना है कि इस प्रकार की घटनाएं न केवल सांस्कृतिक असहिष्णुता को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि कुछ उग्र ताकतें भारत से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों को नष्ट करने का षड्यंत्र कर रही हैं।
रविंद्रनाथ टैगोर केवल एक कवि नहीं थे। वह भारत और बांग्लादेश की साझा आत्मा के प्रतीक थे। उनके घर पर हुआ हमला, दोनों देशों के बीच की भावनात्मक और सांस्कृतिक डोर को झकझोरता है।
सवाल यह है:
क्या हम अपनी धरोहरों की रक्षा करने में इतने असहाय हो चुके हैं?
क्या अब कलम की जगह पत्थर चलेंगे और गीतों की जगह चीखें होंगी?
आज आवश्यकता है कि भारत और बांग्लादेश दोनों सरकारें मिलकर ऐसी घटनाओं के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएं। संस्कृति और साहित्य की विरासत केवल किताबों में नहीं, बल्कि उन स्थलों में भी जीवित रहती है जहाँ विचार जन्म लेते हैं।
"किसी घर को गिराने से विचार नहीं मरते,
पर जब विचारों के घर को जलाया जाता है,
तो सभ्यता सिसक उठती है।"
♥️♥️
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