"राय देने की बीमारी"...
"राय देने की बीमारी"
कुछ लोगों को होती है एक अजीब सी बीमारी,
हर बात में टांग अड़ाने की आदत बन गई है उनकी ।
न जाने कहाँ से पा लेते हैं वो ये अद्भुत अधिकार,
जैसे उन्हें ही हो जीवन का हर राज़़-ओ-करार।
उन्हें लगता है वो हैं सबसे ज़्यादा क़ाबिल,
हर किसी को दें सलाह — गंभीर, कभी-कभी बेहिसाब दिल।
कभी बताते हैं क्या करना चाहिए,
कभी रोकते हैं — "ये मत करना भाई!"
पर कुछ होते हैं सच में समर्थ,
फिर भी रहते हैं शांत, संयमित, और गंभीर पथ।
न देते वो बिन माँगे मशवरा,
क्योंकि जानते हैं हर इंसान है खुद में समझदारा।
हर किसी के पास है सोचने की शक्ति,
अंदर छुपी है सही-गलत की एक अलग ही भक्ति।
सब जानते हैं अपना भला-बुरा,
फिर क्यों चाहिए राय हर मोड़ पर ज़रूरत से ज़्यादा और अधूरी तरह?
जीवन कोई नुस्खा नहीं, जो सब पर चले,
हर किसी की राहें अलग हैं, अलग हैं उनके पल।
राय तब ही दो जब कोई मांगे,
वरना खामोशी भी रिश्तों को बचा ले।
तो मत समझो खुद को सबसे ज्ञानी,
क्योंकि सबके पास है अपनी एक कहानी।
कभी सुनो, कभी समझो, फिर बोलो सही वक़्त पर,
वरना तुम्हारी "राय" कर सकती है किसी और के ज़ख्म पर नमक का असर।
रुपेश रंजन
Very true
ReplyDeleteThat’s true ♥️
ReplyDeleteSo true
ReplyDeletebadhiya
ReplyDeleteNice sir
ReplyDeleteThanks for your comments
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