छुपा हुआ अपराधी...



छुपा हुआ अपराधी

धोखा देता है, पर चेहरे पे मुस्कान रखता है,
झूठे वादों से दिलों का व्यापार करता है।
ऊपर से बनता है जैसे कोई साधु-संत,
अंदर ही अंदर रचता है शैतानी तंत्र।

हृदय से खेलता है जैसे कोई खिलौना हो,
भावनाओं से इस तरह, जैसे वो उसका दोपहर का सोना हो।
वो आँसू देख कर भी नहीं रुकता,
क्योंकि उसका ज़मीर बहुत पहले मर चुका होता।

हर बात में अपनापन, हर चाल में छल,
उसके शब्दों में रस, पर नीयत में है केवल दलदल।
जैसे ही विश्वास करता है कोई उस पर आँख मूंद,
वो वहीं से शुरू करता है अपनी कुटिल चालों की बूंद-बूंद।

पीठ पीछे ज़ख़्म देना उसका धर्म बन चुका है,
हर रिश्ता उसकी नज़रों में केवल एक भ्रम बन चुका है।
बनता है वो हितैषी, सलाहकार, और पथप्रदर्शक,
पर असल में है वह अंदर से आत्मा का तस्कर।

उसकी आँखें चमकती हैं पर रौशनी नहीं देतीं,
उसकी हँसी में मिठास नहीं, सिर्फ़ ज़हर की रेखाएं रहतीं।
वो गुनहगार है, पर कानून की नज़रों से बचा हुआ,
हर दिल में आग लगाकर, खुद धुआँ-धुआँ बचा हुआ।

वो अपराधी है, जिसका जुर्म किसी किताब में नहीं,
पर जिसकी सज़ा हर टूटे दिल की चीख में कहीं।
उसका नाम ना अदालत में लिखा गया,
ना उसकी तस्वीर कभी अख़बार में छपा गया।

पर वो हर जगह है —
मित्र के भेष में, प्रेमी के नाम में, गुरु के चोले में,
और कभी-कभी अपने ही जैसे दिखने वाले इंसान के चेहरे में।


– अंतःकरण को छलने वाला, वो छुपा हुआ अपराधी है।
जो तुम्हारे सबसे करीब होता है… और सबसे ज़्यादा नुकसान करता है।



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