रुचि के आंसुओं में भीगता हुआ एक बेबस प्रेमी।
बहता है कुछ उसमें, चुपचाप हर माह,
मैं देखता हूँ — पर नहीं रोक पाता आह।
उसके चेहरे पे हलकी सी शिकन,
दिल कहता है — काश बाँट सकता ये जलन।
ना खून बहता मुझसे, ना पीड़ा वही,
पर उसकी आँखों में जो सैलाब है — वही मेरी सज़ा सही।
उसकी करवटों में छुपा हुआ दर्द,
हर पल कहता है — ये दुनिया अब भी कितनी सर्द।
ना डॉक्टर हूँ, ना देवता बन सका,
सिर्फ उसका "मैं ठीक हूँ" — सुनकर हर बार थम सका।
गर्म पानी की बोतल, और हल्के से शब्द,
बस यही मेरे हथियार हैं — उसके आँसुओं के विरुद्ध।
मैं पुरुष हूँ — शायद इसलिए बस देखता रह गया,
पर जो कुछ भी महसूस किया — उसे कविता में कह गया।
कभी खुदा से सवाल, कभी तक़दीर से गिला,
"उसका दर्द मेरा होता — तो शायद राहत का भी सिलसिला!"
– रुचि के आंसुओं में भीगता हुआ एक बेबस प्रेमी।
♥️♥️
ReplyDelete