"जब सच्चा प्यार होता है"



"जब सच्चा प्यार होता है"

जब सच्चा प्यार किसी दिल में उतरता है,
तो लफ्ज़ बेमानी हो जाते हैं,
नज़रों की एक चुप्पी बहुत कुछ कह जाती है,
और देह भी मौन होकर संवाद रचती है।

जब कोई लड़की पूरी तरह किसी को स्वीकार करती है,
तो उसका स्पर्श पूजा-सा पवित्र हो जाता है।
वो सिर्फ़ प्रेम नहीं देती,
वो अपना विश्वास, अपनी रूह और अपनी थकन भी सौंप देती है।

उसकी आँखों में बसता है एक विश्राम,
जैसे बरसों से भटकी आत्मा को
अब जाकर अपना ठिकाना मिल गया हो।
उसके भीतर की हर सिहरन एक गीत बन जाती है,
जो सिर्फ़ सच्चा प्रेम समझने वाला सुन सकता है।

पुरुष की एक शांत मुस्कान,
उसका हाथ पकड़ कर कुछ पल बैठना,
वो बिना कहे मन को पढ़ लेना—
ये सब उस लड़की के अंदर एक मीठा तूफ़ान ला देते हैं।

शरीर बाहर से शांत होता है,
मगर भीतर एक नदी बहती है—
अनकहे जज़्बातों की, अनुभूत प्रेम की,
जो सिर्फ़ वही महसूस करती है,
जो स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर चुकी होती है।

उसके लिए प्रेम सिर्फ़ छू लेना नहीं होता,
वो एक प्रार्थना की तरह होता है,
जिसमें वो खुद को खोकर भी
पूर्णता पा जाती है।

क्योंकि सच्चे प्यार में ना शर्त होती है,
ना डर होता है,
बस एक आत्मा होती है—
जो दूसरी आत्मा से जुड़कर
चुपचाप कह देती है:
"मैं तुम्हारी हूँ, सम्पूर्ण रूप से।

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