प्रेम को प्रेम ही रहने दो...
प्रेम को प्रेम ही रहने दो...
प्रेम में कोई ठगा नहीं जाता,
प्रेम इससे ऊपर है —
न लाभ, न हानि का गणित,
न कारणों की खोज, न स्वार्थ की रीत।
प्रेम में कारण ढूँढना,
प्रेम में स्वार्थ होना,
प्रेम की आयु मापना,
प्रेम को सीमाओं में बाँधना —
यह प्रेम नहीं।
प्रेम जीवन जीने की युक्ति है,
यह कोई सांसारिक सौदा नहीं,
यह इश्वरीय अनुभूति है,
जो तर्क से परे है।
प्रेम कभी व्यावहारिक नहीं हो सकता,
यह क्षणिक भी हो सकता है,
और जीवनपर्यंत भी,
यह जीवन के बाद भी रह सकता है —
एक स्मृति, एक ऊर्जा बनकर।
प्रेम को प्रेम ही रहने दो,
उसका पर्याय मत ढूँढो,
वह कोई शब्द नहीं,
वह स्वयं एक सम्पूर्ण अनुभव है।
– रूपेश रंजन
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