मणिपुर फिर जल उठा: विरोध-प्रदर्शन हुए उग्र, इंटरनेट बंद, कर्फ़्यू लागू
मणिपुर फिर जल उठा: विरोध-प्रदर्शन हुए उग्र, इंटरनेट बंद, कर्फ़्यू लागू
मणिपुर — पूर्वोत्तर भारत का एक संवेदनशील राज्य — एक बार फिर अशांति की चपेट में है। बीते कुछ महीनों में मामूली शांति लौटी थी, लेकिन अब हालात फिर से बिगड़ गए हैं। एक बार फिर सड़कें जल रही हैं, युवा गुस्से में हैं, और सरकार को इंटरनेट सेवा बंद कर कर्फ़्यू लगाना पड़ा है।
टकराव की जड़: गिरफ्तारियां और समुदाय की नाराजगी
शनिवार रात को मणिपुर पुलिस ने अरंबाई टेंगगोल (Arambai Tenggol) नामक एक प्रभावशाली संगठन के एक प्रमुख नेता सहित कुछ सदस्यों को गिरफ्तार किया। यह संगठन पहले से ही विवादों में रहा है और कथित रूप से मेइती (Meitei) समुदाय के संरक्षण के नाम पर उग्र गतिविधियों में शामिल रहा है।
गिरफ्तारी की खबर जैसे ही फैली, वादी (valley) क्षेत्र में भारी आक्रोश फैल गया। रविवार सुबह होते-होते हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए और अपने नेताओं की रिहाई की मांग करने लगे।
आंदोलन से हिंसा तक: बसें जलीं, सड़कें बंद
शुरुआती प्रदर्शन जल्द ही हिंसा में बदल गया। गुस्साए लोगों ने सड़कों पर पुराने फर्नीचर और टायर जलाए। कई स्थानों पर सार्वजनिक वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीरों में एक पूरी बस जलकर खाक हो गई दिख रही है — जो इस आंदोलन की तीव्रता को बयां करती है।
कुछ प्रदर्शनकारियों ने आत्मदाह की भी कोशिश की — अपने ऊपर पेट्रोल डाल कर खुद को आग लगाने की धमकी दी, जिससे माहौल और अधिक संवेदनशील हो गया। हालांकि सुरक्षा बलों ने स्थिति को नियंत्रण में लिया, लेकिन यह साफ था कि प्रदर्शनकारी अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं।
इंफाल एयरपोर्ट पर घेराव, झड़पें
प्रदर्शनकारियों ने इंफाल एयरपोर्ट की ओर कूच किया और वहां के गेट को घेर लिया। सुरक्षाबलों के साथ उनकी तीखी झड़पें हुईं। लोगों ने दावा किया कि जब तक गिरफ्तार नेताओं को छोड़ा नहीं जाएगा, आंदोलन जारी रहेगा। एयरपोर्ट पर हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया।
इंटरनेट बंद और कर्फ़्यू: एक बार फिर वही कदम
सरकार ने स्थिति को संभालने के लिए कुछ ज़िलों में पूर्ण कर्फ़्यू लागू कर दिया है और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं। यह कदम अक्सर मणिपुर जैसे संवेदनशील राज्यों में उठाया जाता है ताकि अफवाहें और भड़काऊ सामग्री फैलने से रोकी जा सके।
हालांकि, इन प्रतिबंधों से आम नागरिकों को काफी परेशानी हो रही है — विद्यार्थी, व्यापारी, मरीज, और पत्रकार सभी प्रभावित हो रहे हैं।
बुनियादी समस्या: अभी तक न भर पाए जख्म
गिरफ्तारी एक बहाना है, असली आग तो पिछले साल हुए मेइती और कुकी समुदायों के बीच हिंसक संघर्ष की है। सैकड़ों लोग मारे गए, हजारों विस्थापित हुए, और समुदायों के बीच अविश्वास की दीवार खड़ी हो गई।
अरंबाई टेंगगोल जैसे संगठन इसी संघर्ष की उपज हैं — जो कुछ लोगों के लिए आत्मरक्षा का जरिया हैं, तो बाकी के लिए ये खतरा।
सरकार के लिए दोधारी तलवार
राज्य और केंद्र सरकार दोनों पर दबाव है — एक तरफ उन्हें कानून-व्यवस्था बनाए रखनी है, दूसरी ओर किसी भी कार्रवाई को एक पक्षीय ना दिखने देने की चुनौती भी है। ऐसी स्थिति में सरकार को कठोर कदम उठाने के साथ-साथ समुदायों के बीच संवाद भी बढ़ाना होगा।
आगे क्या? संवाद और विश्वास की जरूरत
अब समय आ गया है कि मणिपुर के सभी वर्गों — युवा, महिलाएं, बुद्धिजीवी, सामाजिक संगठन — को एक साझा मंच पर लाया जाए। हथियारों से नहीं, बल्कि बातचीत और विश्वास से मणिपुर को फिर से खड़ा किया जा सकता है।
यह संकट केवल एक राज्य का नहीं, बल्कि देश की लोकतांत्रिक भावना की परीक्षा है। हमें यह सिद्ध करना होगा कि भारत के किसी कोने की आवाज न सुनी जाए, ऐसा कभी न हो।
निष्कर्ष
मणिपुर में जो कुछ हो रहा है, वह केवल कानून-व्यवस्था का मामला नहीं, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक टूटन का परिणाम है। इस बार शांति केवल प्रशासनिक कदमों से नहीं आएगी — इसके लिए सच्चे मन से समावेश और न्याय की पहल करनी होगी।
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