पाकिस्तान को UN की आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष और प्रतिबंध समिति का प्रमुख नियुक्त किया गया

पाकिस्तान को UN की आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष और प्रतिबंध समिति का प्रमुख नियुक्त किया गया



4 जून, 2025 को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मंच पर एक ऐसा फैसला सामने आया, जिसे कई विशेषज्ञ "तीखा व्यंग्य" कह रहे हैं। पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र (UN) की आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष और प्रतिबंध समिति (Sanctions Committee) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। यह वही पाकिस्तान है, जिसे वर्षों से "आतंकवाद का वैश्विक निर्यातक" कहा जाता रहा है।


विरोधाभासों से भरा फैसला


पाकिस्तान पर लंबे समय से यह आरोप लगता रहा है कि वह आतंकवादी संगठनों को शरण और समर्थन देता है। भारत, अमेरिका, अफगानिस्तान जैसे कई देशों ने इसके खिलाफ ठोस आरोप लगाए हैं। ऐसे में आतंकवाद के खिलाफ सबसे अहम अंतरराष्ट्रीय संस्था में पाकिस्तान को नेतृत्व सौंपना न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि कईयों के लिए इस फैसले की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करता है।


संयुक्त राष्ट्र की दोधारी नीति?


संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य विश्व के सभी देशों को एक साझा मंच देना है, ताकि संवाद और सहयोग के माध्यम से समाधान निकाला जा सके। संभवतः इसी सोच के तहत पाकिस्तान को यह पद दिया गया है — ताकि उसे विश्व मंच पर जिम्मेदार भूमिका निभाने का अवसर मिले। लेकिन क्या यह रणनीति कारगर होगी, या फिर यह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर देगी?


विश्व भर से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं


भारत की ओर से इस पर तीखी प्रतिक्रिया आई है। मीडिया रिपोर्ट्स और रणनीतिक विशेषज्ञों ने इस फैसले को "विडंबनाओं से भरा" और "गंभीर गलती" बताया है। कुछ पश्चिमी देशों के राजनयिकों ने इस पर संयम बरता है, उनका मानना है कि इससे पाकिस्तान को एक सकारात्मक भूमिका निभाने का अवसर मिल सकता है।


लेकिन आलोचकों का तर्क है कि बिना किसी जिम्मेदारी या आत्मनिरीक्षण के ऐसे पद सौंपना, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।


अब आगे क्या?


यह नियुक्ति पाकिस्तान के लिए एक अवसर है — अपनी छवि सुधारने का, आलोचकों को गलत साबित करने का, और सचमुच आतंकवाद के खिलाफ मजबूत कदम उठाने का। परंतु यदि यह मौका सिर्फ एक राजनीतिक दिखावा बनकर रह गया, तो नुकसान पूरे विश्व को होगा।


संयुक्त राष्ट्र को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी नीतियां न सिर्फ संतुलित दिखें, बल्कि व्यावहारिक और प्रभावी भी हों।



निष्कर्ष:

यह निर्णय जितना विवादित है, उतना ही महत्वपूर्ण भी है। यह समय है जब प्रतीकात्मकता से अधिक, परिणामों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। क्या पाकिस्तान इस जिम्मेदारी को निभा पाएगा, या यह इतिहास में एक और विडंबना बनकर रह जाएगा — यह आने वाला वक्त बताएगा।


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