"हर चोटी एक संकेत"

"हर चोटी एक संकेत"

हर बिता पहाड़,
मुझे यह एहसास दिला रहा है,
कि मैं अपने अंत की ओर
धीरे-धीरे बढ़ रहा हूँ।

कभी धूप-सी चढ़ाई,
कभी साये-सी उतराई,
हर मोड़ पर एक सवाल,
क्या यही है जीवन की सच्चाई?

तुम मुझे रोक रही हो,
कभी स्पर्श बनकर,
कभी प्रार्थना बनकर,
कभी अश्रु बनकर…

पर क्या तुम जानती हो?
हर रुकावट एक पल भर का विश्राम है,
जो चलना सिखाता है
और गिरने से भी न डरना बताता है।

मेरा अंत कोई सीमा नहीं,
वो तो एक नई यात्रा की सीढ़ी है,
जैसे पर्वत का शिखर
सिर्फ एक और यात्रा की शुरुआत है।

मैं नहीं थमूँगा,
क्योंकि जीवन थमना नहीं जानता।
तुम्हारा रोकना भी
कभी-कभी मेरे चलने की वजह बन जाता है।

तो चलो,
तुम साथ चलो,
या परछाई बनकर दूर देखो…
पर अब मैं रुकने वाला नहीं…
हर बिता पहाड़ मेरा अनुभव है,
और हर चोटी मेरी आत्मा की उड़ान।

रूपेश रंजन 


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