नहीं मालूम है मुझे...

नहीं मालूम है मुझे
तुम क्या करती हो,
पर इतना जरूर पता है
कि तुम मुझसे प्यार नहीं करती।

मुक़ाम-ए-इश्क़ कभी मंज़िल नहीं होता,
उनका यूं ही कहीं पास होना भी
मोहब्बत में फ़तह से कम नहीं होता।

– रूपेश रंजन



क्या ही पाओगी मुझे पाकर,
मुझे पाकर भी ख़फ़ा ही रहोगी।
मोहब्बत कोई मंज़िल नहीं होती,
वो तो एक एहसास है —
दूसरे के दिल में,
ख़ुद के लिए।

– रूपेश रंजन




ज़्यादा ज़िद मत करो,
या तो पूरा चाहिए — वरना कुछ नहीं।
अगर तुम्हें मैं चाहिए,
तो फिर अधूरा नहीं चाहिए।

मंज़िल अगर सच में चाहिए,
तो ठहराव नहीं, क़दमों की रवानी चाहिए।
रास्तों में यूँ ही तो हर कोई टहलता है,
पर जो मंज़िल तक पहुँचे —
वैसी ही कहानी चाहिए।

– रूपेश रंजन


बात ही कहाँ करती हो तुम,
नफ़रत सी करने लगी हो अब तुम,
हर दुआ की जगह बददुआ देती हो,
कि मर जाऊँ मैं... तड़प-तड़प कर।

रूपेश रंजन... 

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