प्रेम और वासना


प्रेम और वासना


समस्या वहीं से शुरू होती है,

जब किसी को पाना मक़सद हो,

हथियाना हो, क़ब्ज़ा करना हो —

वरना प्रेम में हिंसा की जगह कहाँ होती है?


प्रेम तो है निर्मल धारा,

न देता पीड़ा, न करता किनारा।

किसी को दुःख पहुँचाना,

किसी को आँसू देना —

ये प्रेम की भाषा नहीं हो सकती।


झूठ कहते हैं वो लोग

जो कहते हैं —

"प्रेम था, इसलिए मार दिया",

"प्रेम था, इसलिए जला दिया",

नहीं!

वासना थी — अधूरी, स्वार्थी और अंधी।

तुम्हारे प्रेम में नहीं,

तुम्हारी चाहत थी कलुषित।



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