राजपूत स्वाभिमान

राजपूत स्वाभिमान
(लेखक: रूपेश रंजन)

हड्डी, मांस, रक्त सब ले लो,
छीन लो मुझसे हर एक साँस,
पर जो भूमि थी जहाँ खड़ा था,
वो ऊँचाई रहेगी ख़ास।

ना झुका था कल, ना झुकेगा आज,
राजपूत की रगों में है आग,
कट जाए सिर रणभूमि में,
पर ना होगा आत्मसम्मान का त्याग।

जिसे समझा तुमने बस मिट्टी,
वो मातृभूमि है, पूजा की भूमि,
जहाँ खड़ा हूँ, वो एक गर्व है,
मेरी पहचान, मेरी धुन है।

धन, दौलत, सिंहासन ले लो,
राजा बना दो या बंदी,
पर जो झुका नहीं काल के आगे,
वो है राजपूत की जिद पक्की।

हाथों में तलवार नहीं तो क्या,
छाती में अब भी तूफ़ान है,
मरकर भी ज़िंदा रहता है वो,
जो राजपूत की संतान है।




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