प्रेम थोड़ा नहीं... बहुत ज़्यादा प्रेम चाहिए...

प्रेम थोड़ा नहीं... बहुत ज़्यादा प्रेम चाहिए...
पूरे संसार में... पूरे ब्रह्मांड में...
निश्चित ही नफ़रत से बेहतर है प्रेम...

यह पंक्तियाँ मानवीय चेतना की सबसे सुंदर भावना को उजागर करती हैं — प्रेम
नफ़रत बांटती है, प्रेम जोड़ता है।
नफ़रत तोड़े, प्रेम जोड़े।
नफ़रत सीमाएँ खींचती है, प्रेम सीमाओं को मिटा देता है।
इसलिए प्रेम की मात्रा थोड़ी नहीं, असीम होनी चाहिए —
हर दिल में, हर दिशा में, हर कण में।

क्योंकि अंततः,
"जहाँ प्रेम है, वहीं जीवन है... और जहाँ नफ़रत है, वहाँ केवल अंधकार।"



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