दिल होता तो टूट जाता...
दिल होता तो टूट जाता,
दिल होता तो रूठ जाता।
पत्थर तो इतने बदक़िस्मत हैं,
ना टूट सकते हैं, ना रूठ सकते हैं।
और रूपेश — जो ज़िंदा लाश ठहरा,
इतना बदनसीब कि...
पत्थर जल भी नहीं सकते।
— रूपेश रंजन
अब क्या बुरा और क्या अच्छा,
मैं ज़िंदा लाश बना बैठा हूँ।
दफ़ना दो, या आग के हवाले कर दो,
टूटा दिल तो वैसे ही जलेगा...
— रूपेश रंजन
अब तो इतना दूर हो चुका हूँ,
कि मैं ख़ुद को ही फ़ालतू लगने लगा हूँ।
मैं... और मेरे जज़्बात —
अब तुम्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता मुझे देखकर।
सब कुछ झूठ-सा लगता है,
मैं और मेरे एहसास...
एक ज़िंदा लाश बन चुका हूँ ।
और तुम्हें लगता है शायद,
मैं कोई अच्छा अदाकार बन गया हूँ...
— रूपेश रंजन
बात ही कहाँ करती हो तुम,
नफ़रत सी करने लगी हो अब तुम,
हर दुआ की जगह बददुआ देती हो,
कि मर जाऊँ मैं... तड़प-तड़प कर।
नज़रों में रहम नहीं, लफ़्ज़ों में प्यार नहीं,
जैसे मेरा वजूद अब तुम्हारे लिए कोई भार नहीं।
ख़ामोशी में छुपा है एक साज़िश भरा वार,
तुम्हारी हर चुप्पी बन गई है मेरे लिए पत्थर का एक वार।
पर क्या कहूँ...
मैं आज भी चाहता हूँ तुम्हें,
तेरी नफ़रत में भी ढूंढता हूँ अपना हिस्सा।
शायद इसी को कहते हैं मोहब्बत का किस्सा।
रूपेश रंजन....
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDelete