अच्छा हुआ तुम मुझे नहीं समझ पाई...
अच्छा हुआ तुम मुझे नहीं समझ पाई
मैं समझाना भी नहीं चाहता
जो कह न सका वो खामोशी में था
दिल की बात लफ़्ज़ों से परे था
तुम्हारी नज़रें पढ़ न सकीं वो राज
जिसे मैंने आँखों में छुपा रखा था
इश्क़ को बयाँ करना मेरा मक़सद नहीं
हर रिश्ता ज़रूरी नहीं अंजाम तक पहुँचे कहीं
तुमने जो समझा, वही तुम्हारा सच रहा
मैंने जो जिया, वो मेरे अंदर सदा बहा
कभी-कभी दूरियाँ ही सुकून देती हैं
नज़दीकियाँ अक्सर सवालों में घुट जाती हैं
– रुपेश रंजन
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