जिज्ञासु बालक
जिज्ञासु बालक
हम हैं एक जिज्ञासु बालक, नज़रें उठाए गगन की ओर,
हर तारे से पूछते हैं, क्या तुमने सुनी हमारी बात गौर?
हमारे अंतरिक्ष में बसे भाइयों से करते हैं पुकार,
क्या तुम भी खोजते हो वही, जो है हमारे दिल के पार?
हम भेजते हैं स्वर, शून्य में खो जाने को,
जहाँ सन्नाटा भी सुनता है आत्मा के ताने-बाने को।
हम नहीं चाहते बस देखा जाना,
बल्कि सच में समझा जाना, सुना जाना।
हम निहारते हैं उस परम सत्ता को ऊपर,
जो हर धड़कन को सुनता है, हर भावना को पढ़ता है भीतर।
हमारी प्रार्थनाएँ, आशाएँ, वो आकाश-मार्ग से जाती हैं,
उसकी कृपा में समा कर लौट आती हैं।
तो हम टकटकी लगाए रहते हैं,
अपने भोलेपन में विश्वास जगाए रहते हैं।
इस ब्रह्मांड की यात्रा में जो खोज है, वही हमारा रास्ता है,
क्योंकि ये तारे भी कभी हमारी ही तरह प्यासा था।
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