उसने कहा — जा रही हूँ मैं, भूल जाना मुझे"...

"उसने कहा — जा रही हूँ मैं, भूल जाना मुझे"
मैंने बस इतना कहा —
"इतना आसान नहीं होता किसी को यूँ ही भूल जाना।"

पता नहीं उसने क्या महसूस किया होगा उस पल,
जब वो मुझे छोड़कर जा रही थी...
क्या टूटा होगा उसके अंदर भी कुछ,
जैसे मेरी रूह दरक रही थी?

हम दोनों जानते थे —
अब दोबारा कभी नहीं मिल पाएंगे,
ये बिछड़ना आख़िरी है,
फिर भी दोनों चुप थे...
जैसे लफ़्ज़ भी अब साथ नहीं देना चाहते थे।

हम समझ रहे थे उस दर्द को
जो धीरे-धीरे नसों में उतर रहा था,
जिसका बोझ वक्त के साथ और भारी होता जाएगा।

पर हम ये नहीं जानते थे
कि ये दर्द इतना गहरा होगा,
कि हर बीतता लम्हा
उसी जख्म को और कुरेदता जाएगा।

अब सच्चाई सामने है —
हम कभी नहीं मिलेंगे,
ये यकीन हर दिन और पक्का होता जा रहा है,
और अंदर ही अंदर
वो दर्द मुझे धीरे-धीरे खत्म कर रहा है।

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