"प्रेम का सार"



"प्रेम का सार"

वो ख़ुश थी कि मुझसे पीछा छूटा,
मैं ख़ुश था कि मुझे पूजने को एक और देवता मिल गया।
देवता हों न हों,
भक्त तो होते ही हैं इस संसार में।

देवताओं को देवता नहीं मिलते,
साधक को ही देवता मिलते हैं।
साधक बनो, देवता नहीं —
क्योंकि देवता बनने में अंत है,
साधक बनने में अनंत है।

प्रेम करने वाला बनो,
प्रेम देने वाला बनो,
प्रेम पाने की लालसा मत रखो।

पा लेना ही समाप्ति है,
ये तो मृत्यु के समान है।
प्रयत्न करो,
परिणाम की चिंता से मुक्त होकर,
यही है असली प्रेम —
जहाँ अभिलाषा नहीं, समर्पण हो।

प्रेम कोई व्यापार नहीं,
यह तो एक तप है,
जहाँ खुद को खोकर
सिर्फ देना ही देना होता है।




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