चाँद, तुम्हें तो आदत होगी...
चाँद, तुम्हें तो आदत होगी...
मेरे से कितने आए... कितने चले गए,
मैं भी चला जाऊँगा एक दिन,
बस कुछ लम्हे बाकी हैं इस सफ़र में।
चाँद, तुम्हें तो आदत होगी...
अपने आशिकों को खोने की,
हर रात किसी नए चेहरे को
अपनी ठंडी चाँदनी में छुपाने की।
तुम्हें तो दर्द नहीं होता होगा,
ना आँसू गिरते होंगे तुम्हारी सतह से,
ना कोई टीस जगती होगी,
जब कोई टूटता है ज़मीन पर।
हम तो हर मोहब्बत में बिखर गए,
हर वादा, हर ख्वाब अधूरा रह गया,
पर तुम तो हर रात वैसे ही चमकते हो,
जैसे कुछ हुआ ही न हो।
मैं भी मिट जाऊँगा चुपचाप,
तुम वैसे ही रहोगे, वही शांत, वही अकेले,
किसी और की छत से फिर
कोई और तुझे देखेगा मेरे जैसे।
Comments
Post a Comment