"मैं लिखता हूँ, पर पढ़ नहीं पाता"



"मैं लिखता हूँ, पर पढ़ नहीं पाता"

मैं लिखता हूँ दिल से कविता,
हर पंक्ति में होती है मेरी भावना।
पर जब पढ़ता हूँ किसी और की रचना,
न जाने क्यों, नहीं जगती कोई भावना।

गहराई में उतर नहीं पाता,
शब्दों से भी मैं जुड़ नहीं पाता।
उनकी बातों में कुछ तो है कमी,
या शायद, मुझमें ही है दूरी कहीं।

शायद मेरी सोच कुछ और है,
मेरी राह, उनका मोड़ और है।
मेरी कविता है मेरी आत्मा की पुकार,
दूसरों की लगे बस एक अख़बार।

फिर भी रोज़ मैं कोशिश करता हूँ,
हर शब्द में एक रिश्ता ढूंढ़ता हूँ।
शायद किसी दिन वो बात बन जाए,
और उनकी कविता भी मेरी सी लग जाए...




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