मैं जैसा हूँ, वैसा ही हूँ...

मैं जैसा हूँ, वैसा ही हूँ
– रुपेश रंजन

मैं ऐसा ही हूँ —
बिलकुल स्पष्ट, बिलकुल साफ़,
नक़ाब नहीं, न दिखावे का लिबास।
गलतियाँ हैं मुझमें, हाँ, बेहिसाब,
पर झूठ नहीं बोलता मैं —
जो हूँ, वही दिखता है,
जो दिख रहा हूँ, वही हूँ।

कमज़ोरियाँ हैं —
हाँ, कई बार टूटा हूँ भीतर से,
डगमगाया हूँ रास्तों में,
पर हार नहीं मानी मैंने ख़ुद से।
जानता हूँ अपनी सीमाएँ,
पर पहचानता हूँ अपनी क्षमताएँ भी,
और इन दोनों पर
न शर्म है, न घमंड —
बस सच्चाई है,
सन्नाटे में गूंजती मेरी सादगी।

मैं किसी pedestal पर नहीं खड़ा,
न ही चाहता हूँ देवता बनना,
मैं इंसान हूँ —
गलतियों से भरा,
भावनाओं से बहा,
पर दिल से सच्चा,
नकली नहीं, बनावटी नहीं।

मैं झूठ नहीं रचता अपने लिए,
न कोई चेहरा पहनता हूँ भीड़ के लिए।
जो भी हूँ, जैसे भी हूँ,
मैं वैसा ही हूँ —
ना ज़्यादा, ना कम,
मैं जैसा हूँ, वैसा ही हूँ।


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