मुझे कपड़े अच्छे नहीं लगते...

मुझे कपड़े अच्छे नहीं लगते,
मुझे नंगा होना है।
तुम देख सको मुझे,
ऐसा दिखना है मुझे।

नंगा — तन से नहीं,
बल्कि मन की परतों से।
जहाँ छल और मुखौटे उतर जाएँ,
और बचे सिर्फ़ सच्चाई का चेहरा।

कपड़े तो ढकते हैं सिर्फ़ शरीर को,
पर आत्मा का वस्त्र तो पारदर्शी होता है।
मैं चाहता हूँ कि तुम देखो मुझे
जैसा मैं हूँ —
बिना आवरण, बिना दिखावे,
सिर्फ़ सच्चाई के रूप में।

मुझे छुपाना नहीं आता,
न अपनी कमजोरी, न अपनी चाहत।
जो हूँ, वही हूँ —
और वही दिखना है मुझे।

रूपेश रंजन

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