तुम जानते हो?
तुम जानते हो?
तुम जानते हो,
मुझे क्या पसंद है?
बरसती बूंदों का वो आलिंगन,
जब धरती भीगकर मुस्कुराती है,
जब हवा की हर सरगोशी
मन के भीतर तक उतर जाती है।
समंदर की लहरों की वो तान,
जो कभी चीखती है, कभी गुनगुनाती,
कभी थपकियों-सी सुला देती है,
तो कभी बेचैनी बनकर जगाती।
फूलों की खुशबू का जादू,
जो आँखें मूँदते ही
दिल के किसी गुप्त कमरे में
यादों के दीप जला देता है।
चाँदनी रातों का वो उजाला,
जहाँ तारे भी साज सजाते हैं,
और नदियाँ अपनी सतह पर
चाँद का आईना बन जाती हैं।
मुझे पसंद है,
किसी अजनबी ग़ज़ल की गहराई,
जिसमें हर शेर
मेरे दिल की धड़कनों का आईना लगे।
मुझे पसंद है,
किसी अधूरी किताब का पन्ना,
जिसमें छुपी अधूरी कहानी
मेरे ख्वाबों से पूरी हो जाए।
मुझे पसंद है,
बचपन के गीतों की गूँज,
जो बरसों बाद भी
कानों में वैसी ही लगती है
जैसे माँ की लोरी।
मुझे पसंद है,
दोपहर के आलसी पल,
जब खामोशी भी
अपना एक किस्सा सुनाती है।
मुझे पसंद है,
रात का वो ठहराव,
जब हर कोई सो रहा हो
और मैं चुपचाप
अपने विचारों से बातें करता रहूँ।
पर जानते हो,
इन सब से ज्यादा क्या पसंद है?
वो पहला शब्द,
जो किसी तेहरीर की शुरुआत करता है,
वो पहला लफ़्ज़,
जो एक अजनबी सफ़र की दिशा तय करता है।
क्योंकि उसी पहले लफ़्ज़ में
छुपा होता है पूरा समंदर,
उसी पहले लफ़्ज़ में
फूटती है बरसात की पहली बूंद,
उसी पहले लफ़्ज़ से
महकती है फूलों की पूरी बगिया।
और उसी पहले लफ़्ज़ में
तुम्हारा नाम छुपा होता है,
तुम्हारी मुस्कान छुपी होती है,
तुम्हारी खामोशी छुपी होती है।
तुम जानते हो,
मुझे सबसे ज्यादा क्या पसंद है?
तुम्हारे होने की वो मासूम सी गवाही—
जो हर कविता,
हर मौसम,
हर लफ़्ज़,
हर धड़कन के बीच
अपना घर बना लेती है।
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