जिस दिन मिलूँगा, सूद समेत वापिस लूँगा...
जिस दिन मिलूँगा, सूद समेत वापिस लूँगा,
तेरे हर इनकार का हिसाब चुकता करूँगा।
ये जो तू तड़पा रही है, अच्छा नहीं कर रही है,
इश्क़ की रूह को रोज़ आँसुओं से भर रही है।
इतने दिनों की बेचैनी, इतने लम्हों का इंतज़ार,
जैसे सदियों का सफ़र हो गया बेकार।
हर रात तेरे ख़्वाबों में जागता रहा,
दिल की हदों को दर्द से बाँधता रहा।
तेरी खामोशी ने रूह को तन्हा कर दिया,
हर आह को मोहब्बत का गवाह कर दिया।
मैंने चाहा था तुझसे बस एक इकरार,
तूने दिया दर्द का सौदा बार-बार।
मगर मैं हारने वालों में नहीं,
इश्क़ की राह में रुकने वालों में नहीं।
जिस दिन तू सामने होगी मेरे,
मैं लौटा दूँगा सब दर्द तेरे सहमे हुए चेहरे पे।
मगर दर्द नहीं, मुस्कान में लपेट कर,
सुकून के जाम में तेरे नाम से भर कर।
तेरे आँचल में चैन का जहाँ बसा दूँगा,
तेरी धड़कनों में अपना इश्क़ सजा दूँगा।
उस वक़्त का इंतज़ार है बेइंतिहा,
जब तू कहेगी – "ये इश्क़ है रूह का सदा।"
तब न हिसाब बचेगा, न कोई गिला,
बस मोहब्बत का मंजर होगा, और दिल का किला।
Amazing ♥️♥️
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