मैं सोचता हूँ अक्सर....



मैं सोचता हूँ अक्सर,
कि यह साथ भी एक दिन ख़त्म हो जाएगा।
तुम नहीं सोचती,
क्योंकि तुम्हें लगता है
हर पल अमर है।

पर समय कभी अमर नहीं होता,
वह धीरे-धीरे सब कुछ छीन लेता है।
हमारे पास जो है,
वह बस अभी का पल है—
कल का कोई वचन नहीं।

कभी अचानक
यह बंधन टूट जाएगा,
और जो रह जाएगी,
वह केवल स्मृति होगी,
सांसों की तरह आती-जाती।

स्मृति भी स्थायी कहाँ है,
कुछ दिन उजली,
फिर धुँधली,
और फिर
जैसे कभी थी ही नहीं।

शायद मैं ही पहले
धुँधला हो जाऊँ,
या शायद तुम—
फिर भी सच्चाई यही है,
धुँधलापन निश्चित है।

हम जितना पकड़ना चाहें,
समय हाथ से फिसलता जाएगा।
जितना थामना चाहें,
क्षण उतना ही
रेत की तरह गिर जाएगा।

इसलिए यह भ्रम मत पालो
कि साथ सदा रहेगा।
हर साथ का अपना
एक छोर होता है,
जिसे कोई न देख सके।

फिर सवाल उठता है,
क्या हम हार मान लें?
क्या हम दुख में ही
इस यात्रा को जीएँ?
या फिर हर पल को जिएँ जैसे अंतिम हो।

क्योंकि यदि हर पल अंतिम हो,
तो कोई भी क्षण अधूरा नहीं रहेगा।
फिर विदाई का भय भी
मधुर हो जाएगा,
और प्रेम अपनी पूर्णता पा लेगा।

जीवन की यही सच्चाई है—
मृत्यु की छाया में
हर सांस एक उजाला है।
हर मिलन,
एक अनंत विदाई का पूर्वाभास।

और हर विदाई,
एक अनंत मिलन की तैयारी।

तो सोचो मत,
कब छूटेगा यह साथ।
सोचो बस,
अभी जो है—
वह कितना अमूल्य है।



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