कितना कुछ बदल जाता है...

कितना कुछ बदल जाता है, वक़्त के इस सफ़र में,
कल तक जो अपना था, आज है किसी और के घर में।

मोहब्बत का पैमाना, यूँ पल में ही बिखर जाता है,
दिल का सच छुपाकर, चेहरा नया नज़र आता है।

जिसपे सब कुछ लुटा दिया, वो यादों का सिलसिला बन गया,
और जो नया है, उसमें भी बस एक नाटक सा रंग चढ़ा।

मोहब्बत अगर सच होती, तो यूँ पल में न बिकती,
बदलते चेहरों से असली इंसान की पहचान दिखती।

ज़िंदगी का यही सच है, यहाँ कोई सदा साथ नहीं रहता,
वफ़ा का नाम लेने वाला ही अक्सर सबसे पहले मुकरता।

दिल को ये समझाना पड़ता है कि हर रिश्ता सच्चा नहीं होता,
कभी धोखे से सिख मिलती है, कभी दर्द भी अच्छा लगता है।


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