जब कोई साथ न हो

जब कोई साथ न हो

किसी ने पूछा मुझसे,
"तुम क्यों हर वक्त सबके लिए मौजूद रहते हो?"
मैंने मुस्कुराकर कहा,
"क्योंकि मैंने महसूस किया है—
जब कोई पास न हो, तो कैसा दर्द होता है।"

रात की तन्हाई में
जब सन्नाटा ही जवाब देता है,
दिल को चीरता है वो एहसास
कि तुम्हें पुकारने वाला कोई नहीं।

जब आँखें आंसुओं से भीगती हैं,
और कंधा खोजने पर भी नहीं मिलता,
तब समझ आता है
सहारे की कीमत कितनी बड़ी होती है।

मैंने देखा है लोग टूटते हुए,
खुद को संभालने की कोशिश करते हुए,
पर सिर्फ एक गर्म हाथ का स्पर्श
उनकी टूटी हिम्मत जोड़ देता है।

मैंने जाना है वो सन्नाटा
जहाँ अपनी आवाज़ भी अजनबी लगती है,
जहाँ दिल चाहे कि कोई कहे—
"मैं हूँ तुम्हारे साथ।"

इसीलिए मैं कोशिश करता हूँ
हर किसी के लिए मौजूद रहने की।
क्योंकि कभी किसी की मुस्कान
मेरे होने से लौट आती है।

शायद मैं सबके दर्द मिटा न पाऊँ,
पर किसी की तन्हाई बाँट सकता हूँ।
शायद मैं हल न दे पाऊँ,
पर किसी की सुनकर बोझ हल्का कर सकता हूँ।

किसी ने कहा,
"तुम्हें इससे क्या मिलता है?"
मैंने जवाब दिया,
"सुकून... कि कोई अकेला नहीं रहा
वैसे जैसे मैं रहा था।"

दुनिया अक्सर जल्दी भूल जाती है
दूसरों का दर्द,
पर मैं नहीं भूल पाया वो पल
जब मेरा दर्द
मेरे सिवा किसी को महसूस न हुआ।

आज अगर मैं किसी के लिए छाँव बनूँ,
तो शायद कोई और
धूप में जलने से बच जाए।

आज अगर मैं किसी की रात रोशन कर दूँ,
तो शायद कोई और
अंधेरे में रोने से बच जाए।

शायद इसी लिए मैं हमेशा
लोगों के लिए खड़ा रहता हूँ—
क्योंकि मैं जानता हूँ,
कभी साथ न होने का दर्द
दिल को कितना तोड़ता है।

और अगर मेरी मौजूदगी
किसी टूटे दिल को जोड़ दे,
तो यही मेरे होने का मक़सद है।

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