वो पल दे दे मुझे,

वो पल दे दे मुझे,
मेरे उस पल के लिए।
महक उठे वो घड़ी,
तेरे–मेरे इश्क़ के मिलने से।

उस पल की साँसों में बस तू ही तू हो,
उस पल की ख़ुशबू में रूह की सरगम हो।
सिर्फ़ एक पल का साथ भी सदियों सा लगे,
वो पल अमर हो जाए तेरे मेरे मिलन से।


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वो लम्हा अता कर दे मेरी दुआ के लिए,
कि महक उठे जहाँ तेरे–मेरे वफ़ा के लिए।

तेरे इश्क़ की ख़ुशबू से सज उठे हर साँस,
वो पल रहे अमर सदा, मेरी सदा के लिए।

तेरे मिलन से रूह को राहत-ए-जाम मिल जाए,
वक़्त ठहर जाए फिर बस तेरे नशा के लिए।


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वो लम्हा अता हो मुझे मेरी दुआ के लिए,
महक उठे ये जहाँ तेरे मेरे वफ़ा के लिए।

तेरे दीदार से रौशन हो हर इक मंज़िल,
ठहर जाए वक़्त बस तेरे ही सना के लिए।

तेरे होंठों की तपिश से मिले सुकून-ए-रूह,
ये दिल तरसता है सदा तेरे नवा के लिए।

फ़िज़ा में जब तेरी ख़ुशबू का असर भर जाए,
संसार ठहर जाए तेरे ही अदा के लिए।

हिज्र की रात भी ख़्वाबों से सज जाती है,
वो ख़्वाब जो लिखे गए तेरे मिला के लिए।

‘रुपेश’ हर शेर में बस तेरा ही ज़िक्र रहा,
लिखी गई ये ग़ज़ल तेरे मेरे वफ़ा के लिए।



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वो जो ज़ुल्म तुम कर रही हो अपनी साँसों पे,
क्या गुज़रती होगी उस पे, मुझ में न घुल पाने पे।

तेरी ख़ामोश निगाहों का असर कह न सके,
ज़ख़्म गहरे हो गए दिल के, तेरा मुस्कुराने पे।

फ़ासले इस क़दर बढ़ते गए मंज़िल की तरह,
क़दम ठहर गए लेकिन जुनूँ न थम जाने पे।

‘रुपेश’ इश्क़ की तासीर अजीब होती है,
जान निकलती है मगर नाम तेरा आने पे।



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वो जो ज़ुल्म तुम कर रही हो अपनी साँसों पे,
क्या गुज़रती होगी उस पे, मुझ में न घुल पाने पे।

तेरी आँखों के समुंदर में हज़ार तूफ़ाँ हैं,
दिल ठहरता नहीं क्यूँकर, तेरे मुस्कुराने पे।

रात जागे तो सितारे भी परेशाँ दिखते,
चाँद रो देता है अक्सर, तेरा याद आने पे।

इश्क़ की राह में मुश्किल तो हज़ारों निकली,
पर न रुकता है ये दिल, तेरे निशाँ पाने पे।

ज़ख़्म जितने भी मिले, सज्दे में रक्खे हमने,
हम तो राज़ी रहे हर दर्द-ए-जहाँ सह जाने पे।

‘रुपेश’ तेरे तसव्वुर में है रौशनी सारी,
ज़िंदगी क़ीमत है बस तेरा नाम आने पे।


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