आरज़ू – एक नज़्म
आरज़ू – एक नज़्म
मेरी आरज़ू है कि वो आए, मुस्कुराते हुए,
जैसे बरसों का बिछड़ा हुआ कारवां लौट आए।
वो मेरी खामोशियों को सुन ले,
और अपनी खामोशियों का बोझ मुझसे बाँट जाए।
चाहे इश्क़ लाए अपने दामन में,
या नफ़रत का समंदर ले आए।
मुझे परवाह नहीं उसकी भावनाओं के नाम की,
बस इतना हो कि वो मेरे साथ कुछ लम्हे बिताए।
मैं चाहता हूँ उसकी हर धड़कन का हिस्सा बनना,
जैसे बारिश की बूंदें ज़मीन से गले मिलती हैं।
मैं चाहता हूँ उसकी हर साँस में अपना नाम सुनना,
जैसे कोई प्रार्थना हर रोज़ खुदा से मिलती है।
वो आये तो सही, चाहे शिकायतें लेकर आये,
चाहे आँखों में ग़ुस्से की आग क्यों न हो।
मुझे तो बस उस चेहरे को देखना है,
चाहे आँखों से आँसुओं की धार क्यों न हो।
मुलाक़ात का मतलब सिर्फ़ हँसी नहीं होता,
कभी जख़्मों को खोलकर सामने रखना भी होता है।
कभी सुकून का नाम गले मिलने से नहीं मिलता,
कभी दर्द भी साथ बाँटना इबादत जैसा होता है।
मैं चाहता हूँ हर बात उसी से शुरू हो,
हर सवाल का जवाब उसी पर खत्म हो।
मेरे लफ़्ज़ों का रंग उसी की ओर मुड़ जाए,
मेरे दिल की किताब उसी के नाम लिखी जाए।
वो चाहे मुझे डाँटे, या मुझसे रूठ जाए,
ये भी तो एक अपनापन है, एक रिश्ता है।
मैं हर ग़ुस्से को हँसी में बदल दूँ,
क्योंकि नफ़रत भी तब मायने रखती है जब मोहब्बत गहरी हो।
मेरी आरज़ू है कि वो आये और पूछे,
कितनी देर से मैं उसका इंतज़ार कर रहा हूँ।
वो चाहे आधी रात हो या उजली सुबह,
मेरा दिल हर पल सिर्फ़ उसी की दस्तक सुन रहा हूँ।
मैं चाहता हूँ वो मुझे देखे और चुप रहे,
उस चुप्पी में हज़ार बातें छुपी हों।
उसकी आँखों का जादू मेरी रूह को छू ले,
उसकी साँसों का रेशम मेरे दिल को लपेट ले।
वो चाहे दोस्ती का नाम दे,
या रिश्ते को अनजाना छोड़ दे।
मेरी चाहत तो सिर्फ़ उसका होना है,
चाहे वो जिस भी रूप में सामने आए।
मैं चाहता हूँ कि मेरे हर कल में उसका ज़िक्र हो,
जैसे सुबह में सूरज और रात में चाँद का होना तय है।
मेरे हर सपने की तस्वीर में वही हो,
जैसे हर दुआ में अमन का होना तय है।
वो चाहे मुझे अपनाए या ठुकरा दे,
ये फ़ैसला उसका है, हक़ उसका है।
मेरा काम तो बस चाहत को ज़िंदा रखना है,
और इस चाहत का नाम है – आरज़ू।
कभी इश्क़ के बहाने, कभी नफ़रत के बहाने,
वो मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बने।
कभी मुलाक़ात में, कभी जुदाई में,
वो हर पल मेरी यादों का किस्सा बने।
आख़िरकार मेरी दुआ बस इतनी है,
वो आये और मेरी ख़ामोशी को सुने।
इश्क़ हो या नफ़रत, बस साथ रहे,
और मेरी ज़िन्दगी उसके बिना अधूरी न लगे।
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