सिर्फ़ तुम्हारे लिए —

सिर्फ़ तुम्हारे लिए — 
✍️ रुपेश रंजन

मैं झूठ तो नहीं बोल सकता,
ना ये कह सकता हूँ कि
तुमसे प्यार नहीं करता...
या तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता।

तुम्हारी ख़ुशी में ही मेरी दुनिया बसती है,
तुम्हारी मुस्कान से ही मेरी साँसें चलती हैं।
पर हालात...
वो तो हमें हर रोज़ किसी मोड़ पर लाकर खड़ा कर देते हैं,
जहाँ दिल कुछ कहता है
और ज़िंदगी कुछ और।

कभी लगता है कि
बस छोड़ दूँ सब कुछ...
भाग चलूँ तुम्हारे साथ,
बिना मंज़िल के, बस प्यार के साथ।
पर फिर वही दुनिया, वही ज़िम्मेदारियाँ,
वही मजबूरियाँ—
जो दिल से ज़्यादा दिमाग को सुनना सिखा देती हैं।

मैं चाहता हूँ तुम्हें
हर सुबह की पहली किरण की तरह,
हर रात की आखिरी दुआ की तरह।
पर अभी—
अभी शायद वक़्त हमारा नहीं है,
हमें हालातों के साथ चलना होगा।

पर यक़ीन रखना,
अगर इश्क़ सच्चा है,
तो राहें भटकेंगी नहीं,
मंज़िल ज़रूर मिलेगी...
एक दिन
जब हालात भी हमारे होंगे
और वक़्त भी।

तब तक —
बस तुम्हारी यादों में साँस लेना ही
मेरी मोहब्बत है...
और तुम्हारी ख़ुशी में मुस्कुराना
मेरा इबादत।




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