यदि मेरे अंत से सब कुछ समाप्त हो सकता है...
यदि मेरे अंत से सब कुछ समाप्त हो सकता है,
तो तुम मुझे समाप्त कर दो।
पर सत्य यह है कि
जो कारण मुझमें है, वही तुम्हारे भीतर भी विद्यमान है।
हम अलग नहीं हैं—
हमारे भीतर की वही लौ
बार-बार जन्म लेती है।
तुम उसे दबा सकते हो,
पर मिटा नहीं सकते।
वह फिर किसी रूप में प्रकट होगी,
और हर बार तुम्हें चुनौती देगी।
जिससे तुम घृणा करते हो,
वह किसी परायी भूमि का नहीं,
यहीं की उपज है,
हमारे ही कर्मों और विचारों की छाया है।
मेरा धर्म,
मेरे विचार,
मेरा स्वरूप—
सब इसी मिट्टी से उत्पन्न हुए हैं,
ठीक वैसे ही जैसे तुम।
इसलिए न मेरे जाने से यह प्रवाह थमेगा,
न तुम्हारे रहने से इसका अंत होगा।
यह सतत चलता रहेगा,
विभिन्न रूपों और आकारों में।
अस्तित्व नाश से परे है—
केवल परिवर्तित होता है,
और हर बार नये चोले में सामने आता है।
रुपेश रंजन
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