कविता : "अभी सफ़र बाक़ी है"
कविता : "अभी सफ़र बाक़ी है"
अभी शुरुआत हुई है, अभी अंजाम बाक़ी है,
सपनों की गली में कई इम्तिहान बाक़ी है।
अभी नदियों की लहरें पुकार रही हमें,
अभी पर्वतों के पार कारवां बाक़ी है।
अभी सूरज ढला नहीं, अभी चाँद जागा नहीं,
अभी सवेरा आने का ऐलान बाक़ी है।
अभी हिम्मत की डोर मज़बूत पकड़नी है,
अभी जंग-ए-ज़िन्दगी का मैदान बाक़ी है।
मत समझो कि सफ़र थम गया राहों में,
अभी तो क़दम बढ़ाने का इम्तहान बाक़ी है।
जो टूटा, उसे जोड़कर दिखाना होगा,
अभी दिलों के रिश्तों का सामान बाक़ी है।
अभी सपनों का क़िला गिरा कहाँ है,
अभी विश्वास की दीवार मज़बूत बाक़ी है।
अभी मिट्टी में छुपा सोना निकालना है,
अभी श्रम से लिखना नया बयान बाक़ी है।
अभी मेहनत से रोटी पकानी है,
अभी भूख मिटाने का अरमान बाक़ी है।
अभी खेतों में बीज बोना है सैकड़ों,
अभी लहलहाती फसल का गान बाक़ी है।
अभी आँधियाँ तो आयेंगी राहों में,
अभी दीप जलाना हर शाम बाक़ी है।
अभी डर से टकराना सिखाना है सबको,
अभी साहस का असली पैगाम बाक़ी है।
अभी खुद पे भरोसा जगाना है,
अभी आत्मा का असली प्रमाण बाक़ी है।
अभी उम्मीद के पंख फैलाने हैं,
अभी सपनों को उड़ान का सम्मान बाक़ी है।
अभी पत्थरों को तराशना है कारीगर-सा,
अभी मूर्तियों का निर्माण बाक़ी है।
अभी जो टूटे हैं, उनको जोड़ना है,
अभी रिश्तों का उपचार बाक़ी है।
अभी अनजाने रास्तों से गुज़रना है,
अभी मंज़िल की पहचान बाक़ी है।
अभी रात की चुप्पी तोड़नी है,
अभी गीतों का मधुर गान बाक़ी है।
अभी नफ़रत की दीवारें गिरानी हैं,
अभी मोहब्बत का अरमान बाक़ी है।
अभी धरती को फूलों से सजाना है,
अभी बाग़ों में वसंत का वरदान बाक़ी है।
अभी जो गिरा था, उसे उठाना है,
अभी कमजोर का सम्मान बाक़ी है।
अभी ग़म की घटाओं को हटाना है,
अभी रोशनी का वरदान बाक़ी है।
अभी बच्चों के हाथों में किताबें देनी हैं,
अभी ज्ञान का उजाला चारों ओर बाक़ी है।
अभी बूढ़ों के चेहरे पर मुस्कान लानी है,
अभी अपनापन का प्रमाण बाक़ी है।
अभी किसान के पसीने को फल देना है,
अभी मेहनत का इनाम बाक़ी है।
अभी मज़दूर के हाथों में शक्ति भरनी है,
अभी श्रम का सम्मान बाक़ी है।
अभी गीत अधूरा है सुरों के बिना,
अभी राग का गहन गान बाक़ी है।
अभी इंसानियत की मिसाल रखनी है,
अभी सच्चाई का विधान बाक़ी है।
अभी परिंदों को उड़ना सिखाना है,
अभी आकाश में उड़ान बाक़ी है।
अभी तारे गिनने का वक़्त नहीं आया,
अभी चाँद से मुलाक़ात बाक़ी है।
अभी समंदर को पार करना है,
अभी किनारों का गुमान बाक़ी है।
अभी वीरों की गाथा लिखनी है,
अभी बलिदान का प्रमाण बाक़ी है।
अभी धरती पर न्याय लाना है,
अभी अत्याचार का अंत बाक़ी है।
अभी इंसाफ़ का दीप जलाना है,
अभी सच की जीत बाक़ी है।
अभी टूटे सपनों को जोड़ना है,
अभी आशा का विधान बाक़ी है।
अभी गुलामी की जंजीरें तोड़नी हैं,
अभी आज़ादी का गान बाक़ी है।
अभी रावण को हराना है फिर से,
अभी रामायण का काम बाक़ी है।
अभी सीता का सम्मान बचाना है,
अभी स्त्री की पहचान बाक़ी है।
अभी बच्चों को भय से मुक्त करना है,
अभी बचपन का अधिकार बाक़ी है।
अभी युगों से सोई आत्मा जगानी है,
अभी चेतना का आह्वान बाक़ी है।
अभी क़लम से तलवार बनानी है,
अभी शब्दों का तूफ़ान बाक़ी है।
अभी सच्चाई को हथियार बनाना है,
अभी झूठ का पराजय बाक़ी है।
अभी आग दिलों में जगानी है,
अभी क्रांति का एलान बाक़ी है।
अभी धरती को स्वर्ग बनाना है,
अभी जीवन का सम्मान बाक़ी है।
अभी मानवता को जगाना है,
अभी इंसान का इंसान होना बाक़ी है।
Comments
Post a Comment