ख़ामोशी का इम्तिहान

ख़ामोशी का इम्तिहान

हम भी अब ख़ामोश रहकर
तेरे सब्र को आज़माएँगे,
देखेंगे तुझमें कितना धैर्य है,
कितनी देर तक हमें भूल पाएँगे।

तू कहता था न,
बिना मेरे भी तेरा जहाँ पूरा है,
तो चलो देख ही लें
तेरी ख़ुशियों का कितना नूरा है।

हम अब तुझे संदेश नहीं भेजेंगे,
ना तेरे दर पे दस्तक देंगे,
ना ग़म जताएँगे,
ना शिकायत करेंगे।

बस चुप रहेंगे,
ताकि तुझे भी लगे
कि रिश्तों में खामोशी भी
कभी-कभी सबसे ऊँची पुकार होती है।

देखना चाहता हूँ,
कितना आसान है तेरे लिए
मेरे बिना साँस लेना,
मेरे बिना जीना।

क्या सच में भूल जाएगा तू
उन लम्हों को,
जब तेरी हँसी मेरी धड़कनों का
सबसे प्यारा हिस्सा थी?

या फिर अचानक किसी शाम,
तेरी कॉफी का स्वाद बदल जाएगा,
तेरी किताब का पन्ना थम जाएगा,
और तू सोच लेगा—
“ये खामोशी बहुत भारी है।”

हम भी आज़माएँगे तेरा सब्र,
तू भी आज़मा ले मेरा इंतज़ार,
देखना कौन पहले टूटेगा,
कौन पहले पुकारेगा।

अगर तू जीता,
तो मान लूँगा वाक़ई
तेरी दुनिया में मेरी कमी नहीं,
और मैं बस एक राहगीर था।

अगर मैं जीता,
तो समझ लेना,
तेरे दिल में अब भी एक कोना ऐसा है
जहाँ मेरी यादें धूल झाड़कर
बैठी हुई हैं।

ये खामोशी कोई हार नहीं,
ये बस रिश्तों का इम्तिहान है।
शब्दों से कहे बिना
दिल की सच्चाई को परखना है।

हम भी चुप रहेंगे,
तू भी चुप रहना,
पर याद रखना—
खामोशी सबसे पहले
उस दिल को जलाती है
जिसमें मोहब्बत ज़्यादा होती है।

देखते हैं अब,
तेरी याद कब पलटकर आती है,
देखते हैं अब,
तेरे होंठ कब मेरा नाम दोहराते हैं।

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