तुम हो मेरे पास, पर फिर भी दूर



तुम हो मेरे पास, पर फिर भी दूर

तुम मेरे नहीं हो,
पर खो देने का डर हर पल सताता है।
साथ नहीं चलते हम,
पर दिल में तुम्हारा चेहरा हर वक़्त छप जाता है।

तुम हवा जैसे हो,
कभी पास आकर कानों में फुसफुसा जाते हो,
और अचानक दूर कहीं गुम हो जाते हो।

तुम मौन जैसे हो,
न दिखाई देते हो,
पर चारों ओर तुम्हारी उपस्थिति गूंजती है।

तुम स्वप्न जैसे हो,
अत्यंत सुन्दर,
पर छूने जाऊं तो टूटकर बिखर जाते हो।

मैं तुम्हें अपना नहीं कह पाता,
फिर भी तुम्हें खोने की आशंका
मेरे सीने में आँधी की तरह घूमती है।

तुम्हारी यादें
दिन में भी चुपके से आकर
मुझे अनजाने गीत सुनाती हैं।

रातों में तुम्हारी परछाई
मेरे तकिए से लिपट जाती है,
और मैं आँखे मूँदकर
तुम्हारी सांसों को महसूस करता हूँ।

तुम्हारी अनुपस्थिति भी
मेरे लिए उपस्थिति जैसी है,
तुम्हारी खामोशी भी
कई जवाब दे जाती है।

कभी लगता है,
तुम मेरी कल्पना का टुकड़ा हो,
जिसे मैंने ही गढ़ा है।
कभी लगता है,
तुम सच में हो,
पर समय और दूरी ने तुम्हें
मेरे हाथों से छीन लिया है।

मैंने कभी तुम्हें
सच्चाई में पूरी तरह देखा नहीं,
पर मेरा मन कहता है
कि तुम यहीं हो,
मेरे बहुत पास कहीं।

तुम्हारे बिना जीना
एक अधूरी धड़कन सा है,
एक खालीपन है,
जो शब्दों से नहीं भरा जा सकता।

मेरे हर सवाल का उत्तर
तुम्हारी चुप्पी में छिपा है।
मेरे हर दर्द की दवा
तुम्हारी कल्पना में मिलती है।

तुम्हें खोने का डर,
तुम्हें न पा सकने की पीड़ा,
और तुम्हें महसूस करने का सुख—
तीनों मेरे जीवन का संगम बन गए हैं।

तुम हो या नहीं,
मैं यकीन नहीं कर पाता।
पर मेरा दिल
हर धड़कन में तुम्हारा नाम दोहराता है।

तुम स्वप्न भी हो,
तुम मौन भी हो,
तुम दूरी भी हो,
और सबसे गहरी निकटता भी।

इसलिए मैं तुम्हें
खोना नहीं चाहता,
चाहे तुम मेरे न हो,
फिर भी मैं तुम्हें अपने भीतर
सहेजकर रखना चाहता हूँ।


रूपेश रंजन

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