कितने पास थे, कितने दूर हो गए,
कितने पास थे,
कितने दूर हो गए,
ज़िंदगी में कभी थे हक़ीक़त,
अब ख़्वाब बन गए।
इतने पास कि मेरी साँसों में उतरते थे,
इतने दूर कि अब लम्हों में भी न मिलते हो।
कभी धड़कनों की धुन थे तुम्हारे नाम से,
आज तन्हाई की गूँज में खो गए हो।
कभी साथ चलने का वादा था निगाहों में,
अब रह गया है बस सफ़र का सन्नाटा।
मैंने चाहा था तुम्हें अपने अक्स की तरह,
तुम बिखर गए आईने की तरह।
समय ने कितनी बेरहमियों से हमें बाँटा,
पास लाकर फिर दूरियों में डुबो डाला।
अब न शिकायत है, न कोई इल्ज़ाम,
सिर्फ़ यादों का दरिया है और ख़ामोश किनारे।
तुम चाहो तो ख़्वाबों में लौट आओ,
मैं नींद से न जागूँगा तुम्हें खोने के डर से।
इतना पास कि मेरी रगों में बहो,
इतना दूर कि मेरी पुकार तक न सुनो।
कभी ज़िंदगी थे, अब तसव्वुर हो गए,
कभी सच थे, अब अफ़साना हो गए।
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कपड़ों से क्या ढकूँगा ख़ुद को,
मैं तो नंगा हूँ।
तुम मुझे क्या देखोगे,
मेरे कपड़े तो रोज़ बदलते हैं।
रूपेश रंजन
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तुम जाग सको मेरे साथ,
तुम जाग सको पूरी रात,
तभी आना मेरे पास।
मुझे तुम्हें सोते हुए नहीं देखना,
बल्कि तुम्हें जगाकर करनी है हर बात।
चलो, तफ़सील से कर लें फ़ैसला,
तुम्हें मेरे संग रहना है
या फिर जाना है उस पार।
मैं तो रहूँगा यहीं,
अपनी रौशनी के चिराग़ के साथ,
तन्हाई में भी जलता,
अपने सपनों की लौ संभाले।
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मुझे नींद नहीं आ रही,बहुत कमी महसूस हो रही है।
चाँद को निहार रहा हूँ,खिड़की के पार ठहर रहा हूँ।
आओ आज चाँदनी में हम दोनों सिमट जाएँ,
साँसों की सरगम में कुछ पल चुपके बुन जाएँ।
तेरी आँखों की गहराई में डूब जाऊँ मैं,
तेरे होंठों की गर्मी से खुद को मिटाऊँ मैं।
तन की हर सरगोशी को राग बना दें हम,
दिल की हर ख्वाहिश को आग बना दें हम।
आज ना कोई सीमा हो, ना कोई दूरी रहे,
बस तेरा मेरा मिलन ही पूरी अधूरी रहे।
The way u write the word is on another level♥️♥️
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