मैं क्या ही लिख पाऊँगा...

**मैं क्या ही लिख पाऊँगा,
मैं क्या ही लिख सकता हूँ।
कलम तो उनकी है,
शब्द भी वही हैं,
मैं तो केवल एक माध्यम हूँ।

वे लिख रहे हैं,
वे ही लिखेंगे,
सृजन का स्त्रोत तो वही है।

मैं हूँ भी तो केवल प्रतिबिंब,
मेरा होना भी उनका होना है।
सत्य यह है—
मैं नहीं,
जो है, वही है...
और वही मुझमें है।**रूपेश रंजन




श्याम की बाँसुरी में राधा का प्यार है,
माखन चुराने में नटखट का श्रृंगार है।
जन्माष्टमी का पर्व लाता है उल्लास,
कृष्ण भक्ति में डूबे हर जन का विश्वास।




"क्यों ही जवाब देना किसी को,
जिसके हाथ में सब है, उसी पर ऐतबार करना है।
दुनिया में किसी से क्या लेना-देना,
जिसने हमें बनाया है, उसी को सजदा करना है।"

— रूपेश रंजन



"औक़ात तो सिर्फ़ ख़ुदा की होती है,
हम आज यहाँ हैं, कल कहाँ होंगे कोई नहीं जानता।
ज़िंदगी का सफ़र है बस एक पड़ाव सा,
कल किस मोड़ पर मिलें, यह तक़दीर ही बताती है।"

— रूपेश रंजन



आज मैं लिख रहा हूँ,
कल कोई और लिखेगा,
कहानी तो वही रहेगी,
बस क़लम बदल जाएगी।

शब्दों के मायने नहीं बदलते,
वक्त के साये बदल जाते हैं,
आज मेरी आवाज़ है इसमें,
कल किसी और की प्रतिध्वनि होगी।

ज़िन्दगी की किताब कभी ख़त्म नहीं होती,
बस पन्ने पलटते रहते हैं,
हम लेखक नहीं,
बल्कि वक़्त की स्याही हैं।

जो मैं कह रहा हूँ,
वो भी अनकहे सच का हिस्सा है,
कल कोई और कहेगा,
तो वो भी उसी धड़कन का हिस्सा होगा।

आज मैं हूँ,
कल कोई और होगा,
पर कहानी—
हम सबकी होगी।




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