प्रकृति – सर्वशक्तिमान



प्रकृति – सर्वशक्तिमान

वही है सूरज, वही है चाँद,
वही है धरती का हर प्राण।
जिसने जीवन रचा यहाँ,
जिसने सजाया यह आँगन महान।

वह देती है जल, वह देती है हवा,
वह है सृजन, वह है दया।
पर जब अपमान उसे सहना पड़े,
तो प्रलय बनकर भी आ खड़ी पड़े।

हर पत्ता उसका मंदिर है,
हर नदी उसका पावन ग्रंथ।
हर पर्वत तीर्थ समान,
वही है सृष्टि का मूल मंत्र।

हम उससे जन्मे, उसी में विलीन,
वह ही हमारी आत्मा की तसवीर।
प्रकृति को पूजो, सम्मान करो,
यही है जीवन का सबसे बड़ा अधीन।



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