"तेल और पानी"



"तेल और पानी"
✍🏻 रुपेश रंजन

सब कुछ मेरे आसपास है,
हर शोर, हर साया, हर सांस है।
पर मेरे से जुड़ा कुछ भी नहीं,
ना अपनापन, ना ही कोई प्यास है।

यही तो समझने की बात है,
कि पास होकर भी दूरी साथ है।
सब कुछ है —
पर कुछ भी नहीं,
भीड़ में भी बस एक खाली रात है।

ये संसार, ये रिश्ते, ये रंगीन जाल,
हमने ही बुने हैं, ये तमाम ख्याल।
पर गहराई में कुछ भी ठहरा नहीं,
सब कुछ है पर कुछ भी सच्चा नहीं।

कोई जुड़ाव नहीं, कोई बंधन नहीं,
ना अपनापन, ना ही संग चलने की रज़ा कहीं।
जैसे तेल और पानी —
एक साथ पर कभी एक नहीं।

छू सकते हैं, पर मिल नहीं सकते,
देख सकते हैं, पर जी नहीं सकते।
बस यूँ ही साथ रहते हैं
फिर भी अजनबी रहते हैं।

ये जीवन भी शायद ऐसा ही है,
धूप और छांव का झूठा मेल है।
हर कोई अपने में डूबा हुआ —
सब कुछ है…
पर दिल से जुड़ा कुछ भी नहीं है।




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