हृदय में बसे राम
हृदय में बसे राम
राम कहीं बाहर नहीं,
राम तो भीतर हैं।
हर श्वास में, हर धड़कन में,
तेरे ही स्वर निहित हैं।
जब मन विचलित होता है,
राम का नाम शांति देता है।
जब मोह मन को भटकाता है,
राम का स्मरण प्रकाश देता है।
हे राम! तू ही आत्मा का आधार,
तू ही जीवन का सच्चा सार।
तेरे बिना सब अंधकार,
तेरे संग ही सब उजियार।
मंदिर की घंटी, साधु का ध्यान,
सब तेरे स्वरूप का गान।
सांस–सांस में तू ही रमणीय,
राम–राम जप बने जीवननीय।
मोक्ष का मार्ग सरल है यही,
तेरा नाम जपे हर कोई।
तेरे चरणों में लीन जो हो,
उसके दुख सब क्षण में खो।
हे प्रभु! न सिंहासन चाहिए,
न स्वर्ण, न वैभव चाहिए।
बस तेरे चरणों की शरण मिले,
बस तेरी कृपा अनंत मिले।
राम! तू ही मन का गीत,
तू ही साधक का मीत।
तेरे बिना जीवन व्यर्थ,
तेरे संग ही आत्मा अर्थ।
हर हृदय में जब दीप जले,
तेरे नाम का जप चले,
तो यह संसार बने उद्यान,
तेरे स्मरण से हो कल्याण।
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