मर्यादा पुरुषोत्तम राम

मर्यादा पुरुषोत्तम राम



हे राम! तू केवल नाम नहीं,
एक जीवन–धारा है।
सत्य, धर्म और मर्यादा का,
अमर गगन–तारा है।

तेरे चरणों में झुका समय,
तेरी शुचि छवि से युग खिले,
वनपथ, राजपथ सब तेरे,
तेरे आदर्शों से जग मिले।

त्याग तेरा अनुपम अपार,
सिंहासन छोड़ दिया एक बार,
वचन पिता का निभाने हेतु,
वन बना तेरा सच्चा द्वार।

कठिन था पथ, गहन था वन,
फिर भी मुख पर हँसी बनी,
तेरे धैर्य से मानव सीखे,
कैसे विपदा में भी शांति धनी।

लक्ष्मण की निष्ठा, सीता का तप,
तेरे साथ ही गाथा बनी,
भाई, पत्नी, प्रजा सभी को,
मर्यादा का पाठ सिखा दिया तभी।

रावण जब क्रोध से जलता था,
तेरे मन में शांति पलती थी,
धनुष पर बाण सजग थे यद्यपि,
पर वाणी सदा दया से ढलती थी।

अहंकार गिरा तेरे सम्मुख,
अधर्म हार गया रणभूमि में,
पर तेरे करुणा–हृदय ने भी,
शत्रु को शांति दी अंतिम क्षण में।

हे राम! तू धर्म का नाद है,
हर युग तुझसे आलोकित है।
तेरी छवि बिना मानव जीवन,
शुष्क भूमि सा विस्मृत है।

आज भी जब अन्याय बढ़े,
मनुष्य पथ से भटके कहीं,
तेरे आदर्शों की वाणी सुन,
पथ पर लौटे, बुराई गिरे वही।

मर्यादा–पुरुषोत्तम राम!
तेरा नाम अमर, तेरा धाम अमर,
जब तक यह सृष्टि जीवित है,
तेरी गाथा रहेगी समर।

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