मुझे नागार्जुन बनना है...

मुझे नागार्जुन बनना है... 

मुझे नागार्जुन बनना है,
सिर्फ शब्दों का नहीं,
संघर्षों का भी कवि बनना है।

जहाँ किसान की आँखों में
अधूरी नींद हो,
जहाँ मज़दूर के हाथों में
अधूरी रोटियाँ हों,
मैं वहीं अपनी कविता की
धरती तैयार करूँगा।

मुझे नागार्जुन बनना है,
भीड़ में खड़े होकर
सत्ता को आईना दिखाना है।
झूठ के मीनारों को
अपने शब्दों की चोट से
दरकाना है।

मेरे अक्षर हों
पसीने की ख़ुशबू जैसे,
मेरे छंद हों
जनता के साँस जैसे,
मेरी आवाज़ हो
नदी की तरह साफ़ और गहरी।

मुझे नागार्जुन बनना है—
लोकगीतों की सादगी
और विद्रोह की आग
दोनों को साथ लेकर
हर पन्ने को जगा देना है।

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