तू सोच, मैं लिखूँगा – हर अल्फ़ाज़ को तेरे ख़्याल की ख़ुशबू दूँगा...

तू सोच,
मैं लिखूँगा –
हर अल्फ़ाज़ को तेरे ख़्याल की ख़ुशबू दूँगा,
तेरे ख्वाबों के आसमान पर
अपनी तन्हाई का चाँद टाँग दूँगा।

अच्छा लगेगा मुझे
तेरे लिए लिखना,
जैसे बारिश मिट्टी को छूकर
ख़ुशबू बन जाती है,
वैसे ही तेरे नाम से
मेरे लफ़्ज़ मोहब्बत बन जाएँ।

शायद तेरे सोचे हुए हर ख्याल में
मैं भी किसी रोज़ ठहर जाऊँ,
तेरी धड़कनों के सफ़हे पर
अपनी मोहब्बत लिख जाऊँ।

जब रात गहरी हो और तन्हाई गूंजे,
तो मेरी शायरी तुझे सहारा दे,
तेरे आँसुओं को चूम कर
तेरे चेहरे पर नई मुस्कान सजा दे।

तू अपने ग़म को छुपा न पाए,
तो मेरी लिखी पंक्तियाँ तेरे आंसू पी लें,
तेरे दर्द को अपने सीने में रख लें
और तुझे फिर से जीने की वजह दे दें।

तू सोचते-सोचते ख्वाबों में डूबे,
मैं लिखते-लिखते दुआ बन जाऊँ,
और इस सोच और लिखने के दरमियान
हम दोनों एक-दूसरे में खो जाएँ।

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