दिल को सुकून था, वो भी जुदा हो गई, उम्मीद-ए-ज़िन्दगी मेरी ख़फा हो गई।

दिल को सुकून था, वो भी जुदा हो गई,
उम्मीद-ए-ज़िन्दगी मेरी ख़फा हो गई।


उसका हक़ था, जिधर चाहे चली गई,
मगर मेरी रूह क्यों तन्हा-तन्हा हो गई।


झूठ कहता हूँ सभी से कि मैं ख़ुश हूँ बहुत,
सच ये है कि धड़कन भी सदा हो गई।


दुनिया से छुपा लूँ तो भी क्या हासिल,
ये दर्द तो मेरी पहचान बना हो गई।

ख़ामोशी में भी गूंजती है उसकी सदा,
हर याद मेरे लिए फिर सज़ा हो गई।

'रूपेश' अब किससे अपना हाल-ए-दिल कहे,
जिससे मोहब्बत थी वही बेवफ़ा हो गई।

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