राख क्या रोएगी, राख तो रुलाएगी
राख क्या रोएगी, राख तो रुलाएगी
राख क्या रोएगी,
राख तो रुलाएगी,
यह सिर्फ भस्म नहीं,
पुराने जन्मों की कहानियाँ सुनाएगी।
हर कण में छुपा है कोई जला हुआ सपना,
कोई अधूरा वचन,
कोई टूटी हुई प्रतिज्ञा,
जो रात के सन्नाटे में फुसफुसाएगी।
यह राख तुझे बुलाएगी,
तेरे भीतर की आग को जगाएगी,
तेरी आत्मा को याद दिलाएगी
कि तू वही है
जो राख से उठकर
फीनिक्स की तरह उड़ता है।
राख एक दरवाज़ा है —
जहाँ अंत और शुरुआत
एक साथ मिलते हैं।
यह कहती है —
"मत रो, मैं शून्य नहीं,
मैं अनंत हूँ।"
जो रोते हैं,
वे सिर्फ अंगार देखते हैं,
पर जो जागते हैं,
वे उसमें ब्रह्मांड का नृत्य देख लेते हैं।
राख क्या रोएगी,
राख तो रुलाएगी।
तुझे तेरे भीतर का सत्य दिखाएगी,
तेरे अहंकार को भस्म कर
तुझे परमात्मा से मिलाएगी।
♥️♥️
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