तू सोच, मैं लिखूँगा, तेरे लिए ही, हर लफ़्ज़ तेरे नाम का कर दूँगा।

तू सोच,
मैं लिखूँगा,
तेरे लिए ही,
हर लफ़्ज़ तेरे नाम का कर दूँगा।

अच्छा लगेगा मुझे
तेरे लिए लिखना,
तेरे ख़यालों के धागों से
अपने जज़्बात बुनना।

शायद तेरे सोचे हुए ख्वाबों में
मैं भी कभी उतर आऊँ,
तेरे होंठों पर मुस्कान बनकर
तेरी धड़कनों में गूँज जाऊँ।

जब तू थक जाए इस दुनिया से,
तो मेरी कविताएँ तुझे सहारा दें,
तेरे आँसुओं को चूम लें,
तेरे दर्द को चुरा लें।

तू सोचते-सोचते खो जाए,
मैं लिखते-लिखते पिघल जाऊँ,
और इस लिखने-सोचने के सिलसिले में
हम दोनों एक-दूसरे में घुल जाएँ।

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