नहीं मिलती मुझे वफ़ाएँ, तलाश में मेरी सदियाँ गुज़र गईं...

नहीं मिलती मुझे वफ़ाएँ,
तलाश में मेरी सदियाँ गुज़र गईं,
सुबह की अफ़रातफ़री में,
और रात की वीरानियों में भी
बस मैं ही अकेला रह गया
अपने इकरारनामे की स्याही के साथ।

कहाँ चले गए मोहब्बत करने वाले,
अब यहाँ तो कोई नहीं,
बस चंद हसरतें हैं
जो वक़्त की ज़ंजीरों में क़ैद हैं।

मुझे चाहिए वो मोहब्बत
जो मोहताज़ न हो किसी की,
जो मेरी होकर भी मेरी न हो।
वो मोहब्बत जो इबादत हो,
मगर शर्तों की मोहताज न हो,
जो रूह में उतर जाए,
मगर हाथों में कैद न हो।

मोहब्बत हो — मगर ज़रूरत नहीं,
इश्क़ हो — मगर सौदा नहीं।
ऐसा रिश्ता, जो तन्हाइयों में भी
मेरे दिल की धड़कनों को सुकून दे,
और भीड़ में भी मुझे
ख़ुद से मिलवा दे।

— रूपेश रंजन

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