अब तो मैं कुछ भी नहीं रहा, सब कुछ फ़ना हो चुका है।
अब तो मैं कुछ भी नहीं रहा,
सब कुछ फ़ना हो चुका है।
रूह में उजालों का कोई निशाँ नहीं,
दिल में उम्मीदों का कारवाँ नहीं।
ज़िन्दगी की गलियों में वीरानी है,
हर मोड़ पे बस सुनसानियाँ हैं।
न कोई सदा, न कोई नवा,
बस ख़ामोशी का आलम है हर जगह।
आँखों से अश्क भी रुख़्सत हुए,
अब तो दर्द भी ख़ामोश हो गया।
धड़कनों की तान टूटी हुई,
जिस्म का हर रंग खो गया।
मेरे अंदर न रौशनी बाकी,
न कोई ख़्वाब, न कोई आरज़ू।
सन्नाटा हमसफ़र बन बैठा,
ग़म मेरा ताज, मेरी जुस्तजू।
लब ख़ामोश हैं, जुबाँ गुमसुम,
हवा में भी बोझिल सिसकियाँ।
ख़ुद से भी बेगाना हो चुका हूँ,
बस तन्हाई है और तन्हाइयाँ।
फ़लक से शिकवा करूँ तो किससे?
ज़मीन से बात करूँ तो कैसे?
मेरी सदा लौटकर आती नहीं,
मेरे सवाल का जवाब आता नहीं।
अब मैं ख़ाक की मानिंद बिखरा हुआ,
बेदर्द हवाओं में खो गया।
कभी जो शम्मा-ए-उम्मीद था,
वो भी राख होकर बुझ गया।
ज़िन्दगी का सफ़र बे-मंज़िल है,
हर क़दम पर अंधेरों का साया है।
अब तो मेरी हस्ती ख़ामोशी है,
और मेरी रूह का तराना सन्नाटा है।
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